साथियों ,मैं बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में कैमूर जिले की रामगढ विधानसभा क्षेत्र से एक दल का प्रत्याशी था| आप सोच रहे होंगे कि मैं आखिर कहना क्या चाहता हूँ ?
मैं दरअसल कुछ ऐसे सच ,ऐसे अनुभव बताना चाहता हूँ जो पढ़े लिखे वर्ग के सामने नहीं आ पाते क्योंकि सारा मीडिया चारो तरफ एक ऐसा झूठ का माहौल खड़ा कर रहा है कि चुनाव आयोग द्वारा बनाये गए नियम लोकतंत्र कि किस तरह हत्या कर रहे हैं ये बात बुरी तरह से दबा दी गई है |
साथियों, देश का बीस प्रतिशत कुलीन वर्ग ,नया हुआ अमीर वर्ग संसद में या चुनाव आयोग के अफसरों के रूप में आज से पंद्रह ,सोलह साल पहले चुनाव की व्यवस्था में परिवर्तन लाने का क्रम शुरू हुआ |कभी कहा गया कि चुनाव में धनबल का प्रयोग कम करने के लिए ये सारे बदलाव किये जा रहे हैं | मैं इन बदलाओं की सच्चाई तब तक नहीं समझ पाया जब तक की चुनाव मैदान में नहीं उतरा | नामांकन भरने गया तो पता चला की बिना वकील आप ऐसा कर ही नहीं सकते |वकील है तो फीस भी मांगेगा |यानी पैसे का खर्च |नामांकन फीस दस हजार रुपये |यानी गरीब आदमी का चुनाव लड़ना काफी मुश्किल |
पैसे वाला आदमी यदि प्रत्याशी है तो वो एक नहीं पांच वकील रखता है ,उसके पास तनख्वाह पर रखे हुए लोग हैं जिनमें कुछ लोग जगह जगह सभाओं के लिए अनुमति लेने का काम करेंगे ,कुछ लोग कार्यालय खोलने के लिए भी अनुमति लेने का काम करेंगे |और उम्मीदवार इन कामों से आजाद होकर प्रचार में डूबा रहेगा |अब आप सोचिये की जिसके पास ये सब न हो वो क्या क्या करे ?