अजीब खबर है भाई ,देश को कुछ लोगों ने बेच दिया .क्या ये भी कोई खबर है ?खबर उसे कहते हैं जब कुछ अप्रत्याशित घट जाये .देश बिक गया ,देश को बेच दिया ,देश बिक जाएगा. इन तमाम खबरों से ,सच तो ये है की सिर्फ बोरियत होती है .
भला हो दृश्य माध्यमों को जिन्होंने इस बोरियत को अच्छी तरह समझा ,तभी तो उन्होंने देश के बारे में सोचना और टीवी पर दिखाना ही बंद कर दिया.कभी आपने ध्यान दिया है की देश दिखता ही नहीं टीवी में.या तो दिखता है क्रिकेट ,या दिखता है सिनेमा और उसके कलाकार .
तो जब किसी ने कहा की देश को बेच दिया चाँद नेताओं ने और उद्योगपतियों ने तो मुझे बड़ी जोर से हंसी आई .कभी कभी सोचता हूँ की एक जांच शुरू करूँ की पहली बार देश की बेचने की परंपरा किसने डाली ..और सारी परम्पराएँ चाहे हम भूल जाएँ लेकिन देश को बेचने परंपरा हमने पूरे मनोयोग से निभाई है .तो आईये हम क्यों न देश बेचने की दुकान खोल खोल लें ..आखिर हम बेरोजगारों के लिए इससे अच्छा रोजगार क्या हो सकता है ?
07 मार्च 2010
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अमर जी नमस्कार आप ने तो मीडिया पर करारा व्यंग कसा है चलिए ठीक है शायद इसी से मीडिया अपने कार्यों को ठीक ढंग से अंजाम देने लगे A
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