आज एक लेख पढ़ा ,एक हिंदी की पत्रिका में ,शीर्षक था --संवेदनाएं ही बनाती हैं इंसान को कुदरती सुपरमानव | उसने बताया कि इंसान कि बुद्धि की नहीं ह्रदय की ताकत ही उसे भौतिक जीवन में भी बड़ा इंसान बनाती है |एक नई बात ही कह रहा था ये लेख |
अब तक आमतौर पर समाज में तो यही मान्यता है की संवेदनाएं मनुष्य को कमजोर बनाती हैं लेकिन यहाँ तो बात कुछ दूसरी ही कही जा रही है |धन्यवाद् का पत्र है वो लेखक जिसने मनुष्य जाती की आँखों पर पड़े हुए परदे को उतरने की कोशिश की है |और सच भी यही है |अक्सर हमने देखा है कि बचपन में जो बच्चे और बच्चों कि तुलना में अपनी चीजें दुसरे बच्चों को कम देते हैं वो आगे चलकर आसमान की ऊँचाइयों को नहीं छू पाते |
अमेरिका में एक रिसर्च में दस बच्चों का समूह बनाया गया |और उन्हें एक फल दिया गया |उन्हें कहा गया की दो घंटे तक वे इंतज़ार करें और जब घंटे भर बाद उन्हें कहा जाए तब वे उसे खाएं |दो घंटे बाद जब देखा गया तो हुआ ये की पांच बच्चों ने फल खा लिया था और पांच बच्चों ने इंतजार करना बेहतर समझा |
बीस साल के बाद देखा गया की जिन बच्चों ने फल नहीं खाया था वे जिंदगी में काफी सफल हुए थे |
तो दोस्तों क्यों हम भी अपने बच्चों को संवेदनाओं के माध्यम से जीने की शिक्षा दें ?.
13 मार्च 2010
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