पुनर्जागरण का वक़्त है क्या ?
परम्परा और आधुनिकता के बीच त्रिशंकु की तरह लटकते भारतीय और हिन्दू समाज को जरुरत है एक और पुनर्जागरण की |और ये पुनर्जागरण जरूरी है ज्ञान के क्षेत्र में |हमें फैसला करना पड़ेगा पूर्वाग्रह से मुक्त होकर की ज्ञान की किन शाखाओं को अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना है और किन्हें किनारे कर देना है |
पहले लेते हैं भारतीय ज्योतिष को |मुझे आपत्ति है उन पंडितो पर जो किसी आदमी की जन्म-कुंडली बनाते समय ऊँ गणेशाय नमः लिखकर ज्योतिष को धर्म का हिस्सा बना देते हैं और दूसरी शिकायत है उन लोगों से जो जो कुछ गलत लोगों द्वारा ज्योतिष के गलत इस्तेमाल को ही पूरा ज्योतिष मान लेते हैं
07 अप्रैल 2010
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