25 जनवरी 2011

क्या है सच बिहार के चुनावों का

साथियों ,मैं बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में कैमूर जिले की रामगढ विधानसभा क्षेत्र  से एक दल का प्रत्याशी था| आप सोच रहे होंगे कि मैं आखिर कहना क्या चाहता हूँ ?
  मैं दरअसल कुछ ऐसे सच ,ऐसे अनुभव बताना चाहता हूँ जो पढ़े लिखे वर्ग के सामने नहीं आ पाते क्योंकि सारा मीडिया चारो तरफ एक ऐसा झूठ का माहौल खड़ा कर रहा है कि चुनाव आयोग द्वारा बनाये गए नियम लोकतंत्र कि किस तरह हत्या कर रहे हैं ये बात बुरी तरह से दबा दी गई है |
                                        साथियों, देश का बीस प्रतिशत कुलीन वर्ग ,नया हुआ अमीर वर्ग संसद में या चुनाव आयोग के अफसरों के रूप में आज से पंद्रह ,सोलह साल पहले चुनाव की व्यवस्था में  परिवर्तन लाने का क्रम शुरू हुआ |कभी कहा गया कि चुनाव में धनबल का प्रयोग कम करने के लिए ये सारे बदलाव किये जा रहे हैं | मैं इन बदलाओं की सच्चाई तब तक नहीं समझ पाया जब तक की चुनाव मैदान में नहीं उतरा |  नामांकन भरने गया तो पता चला की बिना वकील आप ऐसा कर ही नहीं सकते |वकील है तो फीस भी मांगेगा |यानी पैसे का खर्च |नामांकन फीस दस हजार रुपये |यानी गरीब आदमी का चुनाव लड़ना काफी मुश्किल |
 पैसे वाला आदमी यदि प्रत्याशी है तो वो एक नहीं पांच वकील रखता है ,उसके पास तनख्वाह पर रखे हुए लोग हैं जिनमें कुछ लोग जगह जगह सभाओं के लिए अनुमति लेने का काम करेंगे ,कुछ लोग कार्यालय खोलने के लिए भी अनुमति   लेने का काम करेंगे |और उम्मीदवार इन कामों से आजाद होकर प्रचार में डूबा रहेगा |अब आप सोचिये की जिसके पास ये सब न हो वो क्या क्या करे ?

21 जनवरी 2011

वाह रे भारत के सपूतों! गांधी की खटिया खड़ी कर दी

कल के हिंदुस्तान में पढ़ा कि एक सर्वे में पाया गया है कि लोकप्रियता में भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं |  भला हो देश के समाचार पत्रों का जिन्होंने इस खबर को कुछ इस अंदाज में पेश किया जैसे कितनी महान घटना है ये |मानो ख़ुशी से नाच उठा हो हिन्दुस्तान कि गांधी जैसे बेकार के आदमी को सचिन जैसे महान शख्स ने पछाड़ दिया हो |
                                                          भाई बात सही भी है क्योंकि समाज और देश के लिए सबकुछ कुर्बान करनेवाले लोगों कि जगह वैसे भी पागलखाने में ही है | सचिन तेंदुलकर जी का देश कि आजादी में क्या योगदान था मुझे नहीं मालूम ,शायद सर्वे करनेवाले को मालूम हो कि सचिन जी ने बल्ले के जोर से ही अंग्रेजी हुकूमत को मार भगाया हो? शायद सचिन  के बल्ले के जोर से देश कि हर भूखी नंगी जनता को भरपेट खाना नसीब होने लगा हो |वैसे देश के चंद अरबपति जानते हैं गांधी अगर याद आयेंगे तो इमानदारी याद आएगी| गांधी अगर याद आयेंगे तो देश के लिए कि हुई कुर्बानी याद आएगी |  इसीलिए नायक बनाओ एक ऐसे शख्स को जो मैदान जाकर बल्ला घुमाए और करोडो रुपये अपनी जेब में डालकर देश कि जनता में इतना लोकप्रिय हो जाए कि गांधी जैसा व्यक्ति  भी बौना दिखाई दे | वाह रे देश के सपूतों |