21 मार्च 2009

आंखों में उम्मीद और दिल में जलजला है ?

आंखों में उम्मीद और दिल में जलजला है कैसे कहें की कैसे जिन्दा हैं हम ?चीख रही है प्रकृति और चीख रहा है ये आसमान भी की ये दुनिया को बनानेवाले क्यों झूठ की इस दुनिया में कबतक मेहमान हो तूम भी ये खुदा बदलो अपने नियम एक एक ऐसी ऐसी कहानी कहानी तो तुम्हारा तुम्हारा उखाड़ फेंकेंगे तुम्हारी हुकूमत और खामोश सिर्फ़ कहानी बनकर ऐसीएक जायेगा तू!एक ऐसी कहानी की तुम्हारा नामलेवा भी नहीं बचेगा इस दुनिया में क्या यही चाहते हो तुम भी?

16 मार्च 2009

क्या चाहते हो संसद तमाशा बन जाए?क्या कहा हाँ ?

कब मिलेगा हमें देश की छाती पर दानव की तरह सवार सफ़ेद नेताओं को वापस बुलाने का अधिकार ?इस देश के आधे से ज्यादा मतदाताओं को तो मालूम ही नहीं है की जयप्रकाश नारायण कौन थे >अरे नौजवान साथियों इन्होने ही तो पहली बार चीख चीख कर पुकार की देश के नेताओं के सामने की देश की जनता को अपने सांसदों को पाँच बरस के पहले भी वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए मगर आप को फुरसत कहाँ है नौजवान भाइयों की आप जान सकें की जिस आजादी की साँस लेकर मौज मस्ती में जी रहे हैं आप वो उन्ही की देन है जिनका नाम तक नहीं जानते हैं आप अब समय आ गया है की हम दबाव बनायें की हमें हर उम्मीदवार को नकारने का अधिकार मिले .

12 मार्च 2009

देश के चौकीदारों |सावधान ?

सन 2009 के april से may के महीनों के बीच deश में कई हजार लूटेरे देश के अनेक भागों में भयानक लूटपाट मचानेवाले हैं इसलिए आप तमाम लोगों को आगाह किया जाता है किiन आनेवाले एक महीनों में दिमाग को खोलकर रहने कि जरुरत है क्योंकि ये हमलावर पारंपरिक हथियारों से नहीं बल्कि नए और अनजाने हथियारों से लैस हैं इनकी पहचान ये है कि ये अक्सर सफ़ेद कपडों में दिखाई देते हैं और कभी कभी सफ़ेद पैंट शर्ट में भी दिखाई देते हैं इनकी जुबान मीठी हिती है और ये बात बात में वादे करते हैं ,आश्वासन देते हैं इनके हाथों में कभी नोटों के बण्डल तो कभी खुबसूरत साडियां और कम्बल होते हैं ये हमें ऐसे लूटते हैं कि हमें एहसास तक नहीं होता कि हम लूट गए .ये हमारा कत्ल नहीं करते ,बल्कि धीरे धीरे हमें मौत के आगोश में ले जाते हैं और हमें इस तरह मार डालते हैं कि अपनी मौत के गुनहगर हम खुद नजर आते हैं -----------इसलिए -----

बा !अदब !बा मुलाहिजा !होशियार
हर खासोआम को इत्तला दी जाती है

कि आज से एक महीने बाद !
अपने घरो कि कि खिड़कियाँ और दरवाजे !डेढ़ माह के लिए बंद रखें ?
ताकि देश किराछा कि जा सके !

11 मार्च 2009

होली मुबारक हो ?मगर क्यों ?

कैसे कहूं की होली मुबारक हो ?दिल में जलजला है और आँखें में एक एक ऐसे दर्द का उन्माद छाया है जिसे मजबूर भी नहीं कर सकता की ऐ बह चलें जालिम दुनिया के ठहाकों का सामान बनने अरे छिपाते पूरे साल भर दिल के भीतर उठाते तूफ़ान को और जब आती है होली तो सोचते हो रंगों की आड़ में ,परम्परा की छाँव taले निकाल लें अपने दिल की भड़ास ?अरे क्यों भरे हो इतनी नफरतों से की एक खूबसूरत सा त्यौहार सिर्फ़ मन की भड़ास निकालने का एक अवसर मात्र बनकर raह जाता है कोशिश तो करें की आनेवाला साल के हर नए दिन ही निकलतें रहें अपने थोड़े गुस्से ,थोड़े झूठ ,थोड़े नफ़रत ताकि जब आए होली तो जी भर कर झूम सकें ,नाच सकें .जी भर कर अपने जिंदादिल दिल को खुराक दे सकें आज इतना ही ?अरे भाई होली है आज

08 मार्च 2009

ऑस्कर क्या देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं का खिलवाड़ नहीं है?

आज देखा हिंदुस्तान दैनिक में महिला सशक्ति करण की वकालत करते एक पन्ने पर सबसे ऊपर चेहरा था "स्माइल पिंकी "नाम की फ़िल्म की मुख्या पात्र एक लड़की का ,उसे ऐसे प्रकाशित किया जाया रहा है जैसे हमारे देश ने सारी दुनिया पर अपना झंडा लहरा दिया है अजीब पागलपन है देशवाशियों अरे हमारे हिंदुस्तान में लाखों या करोड़ों लड़कियाँ हैं जो नजाने देश के किस कोने में दब कर और कुचलकर विलुप्त हो जाती हैं और कोई ऑस्कर नही मिलाता उन्हें कोई सरकार गोद नही लेती उन्हें क्योंकि मीडिया को एक कहानी मिली है और झूठे पाखंड का झुन्झुन्ना थमाकर हिंदुस्तान पर राज करनेवालों नकली चेहरों को एक मौका की वे अपने पाप को छिपाकर महानता का मुखौटा लगा सकें इसीलिए पिंकी सबकी प्यारी है वाह रे चालाकों की दुनिया ?

07 मार्च 2009

देश में आग लगी है और देश के लीडर बांसूरी बजा रहे हैं ?

शायद इतिहास ख़ुद को दोहरा रहा है या की एक नया इतिहास बन रहा है .चाहे जो भी हो पर सच्चाई yaही है की देश में आग लगी है और हमारे नेता चैन की बांसूरी बजा रहे हैं हम कौन सा नगाडा बजाएं या कौन सी चीख पैदा करें की इनकी आंखों पर पड़ा परदा हट जाए.

04 मार्च 2009

क्या पागल शासकों के इस देश में सच्चाई सिर्फ़ एक कथा होगी

झूठ का बाजार इतना गरम है की सच्चाई और सच बोलनेवालों को पागल करार देकर चुप रहने को मजबूर कर दिया गया है .अनुराग कश्यप जी ,देव डी से क्या संदेश देना चाहते हैं ?शरतचंद्र जी के ऊपन्यासों की टूटी हुई भावुकता का मैं भी घोर विरोधी हूँ लेकिन ये कमजोरी आप निर्देशकों की है की शरत जी दूसरे महान ऊपन्यासों को आपलोग उपेछित कर देते हैं और देवदास के नाम पर शरत जी का मजाक बनाते हैंअपनी आँखें क्यों नहीं खोलते बॉलीवुड के निर्देशक ?क्या इनकी आंखों पर भी देश के नेताओं की तरह मोटा परदा पड़ गया हैं ?शायद हाँ

01 मार्च 2009

आ गया थके मांदे इंसानों को लूटने का त्यौहार ?

बहूत जल्द ही शुरू होनेवाला है पाँच बरस में सिर्फ़ एक बार होनेवाला खेल ?एक ऐसा खेल जिसमे " एक आदमी रोटी बेलता है ,एक आदमी रोटी सेंकता है ,एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है न सेंकता है ,वो रोटी से खेलता है वो तीसरा आदमी कौन है ?मेरे देश की संसद मौन है " जी हाँ कवि धूमिल की भाषा में शायद अच्छी तरह समझा जा सकता है इस झूठ और पाखण्ड को लेकिन क्या करें भाई हम ?तमाशबीन बने हैं हम भी तो आख़िर पिछले साठ वर्षों से क्या आपने कल्पना की है कभी ऐसे दृश्य की ,जब संसद में पांच सौ पैंतालिस सीटों पर देश की किसी जेल में रहनेवाले अपराधी ही चुनाव जीत कर आ जायें जी हाँ तब उसी किसी एक में से हमें प्रधानमंत्री का भी चुनाव करना पड़ेगा तब ज़रा सोचिये की क्या होगा इस देश का