क़ानून है या नाटक ?
आज से बीस साल पहले की एक घटना मुझे आज न जाने क्यों याद आ रही है |दरअसल मैंने एक पत्रिका में देश में लागू उस क़ानून के बारे में पढ़ रहाथा जिसमें चौदह साल से कम के बच्चो को काम पर रखना जुर्म माना गया है | मेरे एक मित्र थे पटना में |मैं उस समय ग्यारहवीं में पढ़ता था | मेरे मित्र के पिताजी अवकाश प्राप्त शिक्षक थे |उनके पास एक बहुत ही गरीब आदमी का बारह वर्षीय बेटा रहता था जो घर के लोगों को चाय -पानी पिलाया करता था |दरअसल वो लड़का सात भाई था |गरीबी का आलम ये की कमानेवाला सिर्फ एक उसका पिता और वो भी बीमार व्यक्ति |
शिक्षक महोदय बड़े ही भावुक और इमानदार व्यक्ति थे एक दिन किसी तरह उस लडके के पिता से मिल गए |उसके पिता ने अपना दुख बताया तो उन्होंने उसे अपने घर रख लिया |
उसे वे अपने बेटों की तरह मानते थे |कुछ ही दिनों में वो लड़का खा पीकर काफी स्वस्थ हो गया और कुछ घर में ही पढ़ने लिखने सीखने लगा |उसकी जिंदगी मजे में गुजरने लगी थी ली अचानक एक दिन शक्षक महोदय के एक मित्र ने उन्हें श्रम क़ानून के बारे में बताया और साथ साथ ये भी कहा कि" आप गलत हैं क्योंकि आप गैरकानूनी काम कर रहे हैं और यदि इसे आपने इसके घर नहीं भेजा तो आप कानूनी लफड़े में फँस जायेंगे |
उसके बाद आप सोच सकते हैं कि क्या हुआ होगा |उन्होंने उस लडके के पिता को बुलाया और उसे अपनी मजबूरी बताते हुए उसे अपने घर से हटा दिया | बाद में वो लड़का फिर उसी गरीबी में पलने लगा और कुछ दिन बाद उसकी तबीयत खराब हो गई |
कुछ दिन बाद वो लड़का इलाज के अभाव में मर गया | मैं आज तक नहीं समझ पाता कि गलती क़ानून बनानेवाली सरकार की थी या समाज की ? क्या सार्थकता है इन कानूनों की देश में जहा आधी आबादी भूख को साथ लेकर सोती है |
31 मई 2010
29 मई 2010
लाल क्रांति क्या है
लाल क्रांति क्या है?
कहीं खून की होली खेलते लोग तो कहीं सत्ता की नीतियों का शिकार बने दर्द और भूख से तड़पते लोग |अक्सर जब अखबारों में पढ़ता हूँ कि नक्सलियों ने फला जगह बम विस्फोट किया तो फलाँ जगह ट्रेन उड़ा दिया | और हम सब सर पकड़कर बैठ जाते हैं |
लेकिन चीजें इतनी आसान और सीधी सादी हैं जितनी दिखती हैं ? क्या ये मामला सिर्फ क़ानून का है ? व्यवस्था का नहीं हैं ? आम जन के साथ होनेवाले मजाक का नहीं है ?
जहाँ अपनी जमीं का हिसा पाने के लिए न्यायलय में जज को घूस देना पड़ता है |जहाँ बाप की अस्थि पाने के लिए बेटों को रिश्वत देनी पड़े | जहाँ कहीं कोई नियंत्रण नहीं है शासन का देश के ताकतवर लोगों पर |जहाँ लोकतंत्र एक मजाक और त्यौहार है मौज मस्ती का | वहाँ कुछ लोग अपने असंतोष को दबा नहीं पाते और बंदूकें उठा लेते हैं तो पूरा देश थर्रा उठता है|
न्यूटन का सिद्धांत है कि क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है | तो आप क्या सोचते हैं ?
ये नक्सलवाद क्या है ? मैं आप पर छोड़ता हूँ फैसला !
कहीं खून की होली खेलते लोग तो कहीं सत्ता की नीतियों का शिकार बने दर्द और भूख से तड़पते लोग |अक्सर जब अखबारों में पढ़ता हूँ कि नक्सलियों ने फला जगह बम विस्फोट किया तो फलाँ जगह ट्रेन उड़ा दिया | और हम सब सर पकड़कर बैठ जाते हैं |
लेकिन चीजें इतनी आसान और सीधी सादी हैं जितनी दिखती हैं ? क्या ये मामला सिर्फ क़ानून का है ? व्यवस्था का नहीं हैं ? आम जन के साथ होनेवाले मजाक का नहीं है ?
जहाँ अपनी जमीं का हिसा पाने के लिए न्यायलय में जज को घूस देना पड़ता है |जहाँ बाप की अस्थि पाने के लिए बेटों को रिश्वत देनी पड़े | जहाँ कहीं कोई नियंत्रण नहीं है शासन का देश के ताकतवर लोगों पर |जहाँ लोकतंत्र एक मजाक और त्यौहार है मौज मस्ती का | वहाँ कुछ लोग अपने असंतोष को दबा नहीं पाते और बंदूकें उठा लेते हैं तो पूरा देश थर्रा उठता है|
न्यूटन का सिद्धांत है कि क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है | तो आप क्या सोचते हैं ?
ये नक्सलवाद क्या है ? मैं आप पर छोड़ता हूँ फैसला !
23 मई 2010
प्रख्यात ब्लॉगर रविश जी का हिन्दुस्तान दैनिक में कालम पढ़ा .वे एक ऐसे ब्लॉगर कि चर्चा करते हैं जो बिहार के कोसी इलाके के एक म गाँव में अमेरिका के बिल गेट्स के दौरे की चर्चा करते हैं |सवाल एक बार फिर वही है की जिस बिहार की मिटटी से जन्मे हजारो लोग विदेशों में जाकर अरबो की संपत्ति के मालिक हैं उसी बिहार के कोसी क्षेत्र की बदहाली की सुध जो ले रहा है वो न तो बिहारी है न हिन्दुस्तानी |
क्या करें हम ?शर्म करें या गुस्सा ?या आँख और कान बंद कर लें और आसपास क्या हो रहा है उस पर ध्यान देना बंद कर दें ? लेकिन अन्दर का जागरूक मानस ऐसा भी तो करने नहीं दे रहा है|
क्यों हम अपनो के दर्द से आँखें चुराए बैठे हैं और पराये आकर हमारे अपनो के दर्द समेटने में लगे हैं |
ये बुद्ध और महावीर का देश है जहाँ त्याग और परोपकार की सबसे ज्यादा बातें हुई हैं |लेकिन क्यों उलटी शिक्षा लेते हैं हम |धन और स्त्री को पाप कहा गया है हमारे धर्मशास्त्रों में |लेकिन हमारी सोच का लगभग सारा हिस्सा धन और स्त्री को समर्पित है|
धन्य हैं हम | और धन्य है हमारा देश |
क्या करें हम ?शर्म करें या गुस्सा ?या आँख और कान बंद कर लें और आसपास क्या हो रहा है उस पर ध्यान देना बंद कर दें ? लेकिन अन्दर का जागरूक मानस ऐसा भी तो करने नहीं दे रहा है|
क्यों हम अपनो के दर्द से आँखें चुराए बैठे हैं और पराये आकर हमारे अपनो के दर्द समेटने में लगे हैं |
ये बुद्ध और महावीर का देश है जहाँ त्याग और परोपकार की सबसे ज्यादा बातें हुई हैं |लेकिन क्यों उलटी शिक्षा लेते हैं हम |धन और स्त्री को पाप कहा गया है हमारे धर्मशास्त्रों में |लेकिन हमारी सोच का लगभग सारा हिस्सा धन और स्त्री को समर्पित है|
धन्य हैं हम | और धन्य है हमारा देश |
17 मई 2010
मक्कारी शहर नहीं गाँव की औलाद है
मक्कारी शहर नहीं गाँव की औलाद है ?
अरे भाई चौंकिए मत| गाँव रहे हैं कभी ?जिनका गाँव की मिटटी से गहरा सम्बन्ध नहीं है वही कह सकता है की गाँव के लोग भोले -भाले और सीधे होते हैं |एक बार विजय दान देथा जी ने कहा था की गाँव का सबसे सीधा आदमी और शहर का सबसे बड़ा गुंडा एक बराबर हैं |
मैं जिस भी गाँव में गया चाहे मेरा गाँव हो या कोई रिश्तेदारी का गाँव हर जगह एक दुसरे के प्रति लोगों में इतना द्वेष भरा पड़ा है की अगर आप चाहें कि किसी से मतलब नहीं रखते हुए चुपचाप अपना विकास करते रहें तो आप भूल जाइये ,ऐसा नहीं कर सकते आप |क्योंकि गाँव का आपका पडोसी अपना काम छोड़कर आप के पीछे पड़ा रहेगा कि कैसे आपको विकास के रस्ते से पीछे खींचें |शहर में या बड़े महानगरों में भले ही लोगों के पास आपके लिए समय नहीं है लेकिन लोग जब भी मौक़ा मिलता है आपको मदद ही करते हैं |
भैया gaon खाली दूर से अच्छा लगता लगता है |
एक कथा सुनाता हूँ |एक बार तुलसीदास जी जब मृत्यु शैया पर थीं उनकी पत्नी रत्नावली तो गाँव गए अपने पत्नी को अंतिम दर्शन देने | तो गाँव के एक आदमी ने कहाः कि ",अरे यार ई तो तुलसिया है "
तुलसी बाबा जी ने कहा ":तुलसी वहाँ न जाइये जहां आपका गाँव ;दास गया, तुलसी गया पड़ा तुलसी तुलसिया नाम ;" तो भैया यही है गाँव |
अरे भाई चौंकिए मत| गाँव रहे हैं कभी ?जिनका गाँव की मिटटी से गहरा सम्बन्ध नहीं है वही कह सकता है की गाँव के लोग भोले -भाले और सीधे होते हैं |एक बार विजय दान देथा जी ने कहा था की गाँव का सबसे सीधा आदमी और शहर का सबसे बड़ा गुंडा एक बराबर हैं |
मैं जिस भी गाँव में गया चाहे मेरा गाँव हो या कोई रिश्तेदारी का गाँव हर जगह एक दुसरे के प्रति लोगों में इतना द्वेष भरा पड़ा है की अगर आप चाहें कि किसी से मतलब नहीं रखते हुए चुपचाप अपना विकास करते रहें तो आप भूल जाइये ,ऐसा नहीं कर सकते आप |क्योंकि गाँव का आपका पडोसी अपना काम छोड़कर आप के पीछे पड़ा रहेगा कि कैसे आपको विकास के रस्ते से पीछे खींचें |शहर में या बड़े महानगरों में भले ही लोगों के पास आपके लिए समय नहीं है लेकिन लोग जब भी मौक़ा मिलता है आपको मदद ही करते हैं |
भैया gaon खाली दूर से अच्छा लगता लगता है |
एक कथा सुनाता हूँ |एक बार तुलसीदास जी जब मृत्यु शैया पर थीं उनकी पत्नी रत्नावली तो गाँव गए अपने पत्नी को अंतिम दर्शन देने | तो गाँव के एक आदमी ने कहाः कि ",अरे यार ई तो तुलसिया है "
तुलसी बाबा जी ने कहा ":तुलसी वहाँ न जाइये जहां आपका गाँव ;दास गया, तुलसी गया पड़ा तुलसी तुलसिया नाम ;" तो भैया यही है गाँव |
15 मई 2010
सार्वभौमिक सत्य कुछ नहीं होता
सार्वभौमिक सत्य कुछ नहीं होता ? सबके अपने अपने सत्य हैं ?अमेरिका में रहनेवाले व्यक्ति के लिए जब सूरज का डूबना सत्य होता है तो हमारे लिए उसी समय सूरज का निकलना सत्य होता है
बात ईश्वर नाम के किसी अस्तित्व के होने न होने की है,
किसी भी इंसान के जीवन की घटनाएँ ही उसे आस्तिक या नास्तिक बनाती हैं |मैं बहुत बड़ा नास्तिक था |शायद कभी -कभी आज भी हो उठता हूँ |
आज से बीस साल पहले की घटना है |मैं उस समय स्नातक का छात्र था दिल्ली विश्वविद्यालय में |छुट्टियों में अपने घर बिहार आया हुआ था |गाँव के एक लडके की शादी में मैं सासाराम गया हुआ था |शादी ख़त्म होने के बाद मैं और मेरा एक मित्र ट्रेन के द्वारा बनारस शहर के लिए चल पड़े |हर स्टेशन पर सिर्फ एक मिनट रुकनेवाली सवारी गाड़ी में हम लोग चढ़े |दपहर का समय था और ट्रेन में तिल रखने की भी जगह नहीं थी |किसी तरह घुसते हुए मैं खिड़की के पास की एक सीट पर जा बैठा |गाड़ी आगे बढ़ी |मुहे प्यास लगी |पहले मैं सोचा की अगले स्टेशन पर गाडी रुकेगी तो पानी पी लूंगा
लेकिन अगला स्टेशन आयी और गाड़ी से उतरना भी संभव नहीं लगा और स्टेशन पर दूर दूर तक पानी की कोई संभावना नहीं दिखी |इधर मेरी प्यास जोरो पर थी |एक दो स्टेशन पार करते करते मेरी हालत खराब होने लगी |मैं आँखें बंद कर ली और मन ही मन गहराई से सोचा की काश मुझे एक गिलास पानी मिल जाए |
गाडी एक स्टेशन पर रुकी |अचानक खिड़की के पास एक छोटा बछा कहीं से एक बाल्टी में पानी और एक गिलास लेकर आया और मुझसे पूछने लगा ,भैया जी पानी पियेंगे क्या ?मेरी जान में जान आई |मैंने पूछा हाँ कितने का एक गिलास पानी दोगे ? उसने कहा कि एक भी पैसा नहीं |
उसने मुझे पानी पिलाया और चुपचाप वापस चला गया |मैं आज तक समझ नहीं पाता कि वो घटना क्या थी ? सिर्फ एक संयोग या टेलोपैथी या ईश्वर ?
इसीलिए मैं अब इस बहस में नहीं पड़ता कि ईश्वर है या नहीं | मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा कि तुम मानते हो कि ईश्वर है या नहीं | मैंने उत्तर दिया कि मेरे मानने या नहीं मानने से क्या ईश्वर का अस्तित्व है |ईश्वर है तो है ,नहीं है तो नहीं है |ईश्वर स्वंय में एक अस्तित्व है |अस्तित्व ही तो ईश्वर है |फिर ईश्वर है या नहीं हैं ये बहस ही बेकार है |
बात ईश्वर नाम के किसी अस्तित्व के होने न होने की है,
किसी भी इंसान के जीवन की घटनाएँ ही उसे आस्तिक या नास्तिक बनाती हैं |मैं बहुत बड़ा नास्तिक था |शायद कभी -कभी आज भी हो उठता हूँ |
आज से बीस साल पहले की घटना है |मैं उस समय स्नातक का छात्र था दिल्ली विश्वविद्यालय में |छुट्टियों में अपने घर बिहार आया हुआ था |गाँव के एक लडके की शादी में मैं सासाराम गया हुआ था |शादी ख़त्म होने के बाद मैं और मेरा एक मित्र ट्रेन के द्वारा बनारस शहर के लिए चल पड़े |हर स्टेशन पर सिर्फ एक मिनट रुकनेवाली सवारी गाड़ी में हम लोग चढ़े |दपहर का समय था और ट्रेन में तिल रखने की भी जगह नहीं थी |किसी तरह घुसते हुए मैं खिड़की के पास की एक सीट पर जा बैठा |गाड़ी आगे बढ़ी |मुहे प्यास लगी |पहले मैं सोचा की अगले स्टेशन पर गाडी रुकेगी तो पानी पी लूंगा
लेकिन अगला स्टेशन आयी और गाड़ी से उतरना भी संभव नहीं लगा और स्टेशन पर दूर दूर तक पानी की कोई संभावना नहीं दिखी |इधर मेरी प्यास जोरो पर थी |एक दो स्टेशन पार करते करते मेरी हालत खराब होने लगी |मैं आँखें बंद कर ली और मन ही मन गहराई से सोचा की काश मुझे एक गिलास पानी मिल जाए |
गाडी एक स्टेशन पर रुकी |अचानक खिड़की के पास एक छोटा बछा कहीं से एक बाल्टी में पानी और एक गिलास लेकर आया और मुझसे पूछने लगा ,भैया जी पानी पियेंगे क्या ?मेरी जान में जान आई |मैंने पूछा हाँ कितने का एक गिलास पानी दोगे ? उसने कहा कि एक भी पैसा नहीं |
उसने मुझे पानी पिलाया और चुपचाप वापस चला गया |मैं आज तक समझ नहीं पाता कि वो घटना क्या थी ? सिर्फ एक संयोग या टेलोपैथी या ईश्वर ?
इसीलिए मैं अब इस बहस में नहीं पड़ता कि ईश्वर है या नहीं | मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा कि तुम मानते हो कि ईश्वर है या नहीं | मैंने उत्तर दिया कि मेरे मानने या नहीं मानने से क्या ईश्वर का अस्तित्व है |ईश्वर है तो है ,नहीं है तो नहीं है |ईश्वर स्वंय में एक अस्तित्व है |अस्तित्व ही तो ईश्वर है |फिर ईश्वर है या नहीं हैं ये बहस ही बेकार है |
14 मई 2010
राजनीति से दूर रहनेवालों !सावधान ?
राजनीति से दूर रहनेवालों !सावधान ?
इस देश का दुश्मन कौन ?राजनीति करनेवाले या राजनीति से दूर रहनेवाले ?जी नहीं राजनीति से दूर रहनेवाला इमानदार आदमी इस देश का सबसे ज्यादा नुकसान कर रहा है |
एक उदहारण दे रहा हूँ |मान लीजिये आप सड़क पर जा रहे हों और कुछ गुंडे किसी महिला की इज्जत लूटने की कोशिश कर रहे हों तो आप क्या करेंगे ?उन गुंडों पर जो हथियार आपके पास हों उनसे हमला कर देंगे या अहिंसा के पुजारी बनकर चुपचाप वहाँ से खिसक लेंगे ?
अब यही सवाल देश के लोकतंत्र के बारे में है |लोकतंत्र का सबसे बड़ा हिस्सा है चुनाव |ज्यादातर लोगों को मैंने कहते सूना है की राजनीति और चुनाव लड़ना ये दोनों शरीफों का काम नहीं है ,कि आजकल माफिया और अपराधी ही चुनाव लड सकते है |ये देश के बहुमत की आवाज है |ये आवाज उन लोगों की भी है जो अपना मत बूथों पर जाकर देते हैं |
ये तथाकथित देश के शरीफ लोग राजनीति का मैदान गलत लोगों के लिए छोड़कर देश का कौन सा भला कर रहे हैं |राजनीति और लोकतंत्र का बलात्कार करनेवालों से भिड़ जाना न्याय है या वहाँ से हट जाना ?
लेकिन इस देश में ऐसे लोगों को ही पूजा जाता है जो अपने आप को महान कहलाने के लिए जिम्मेदारियों से पलायन कर जाते हैं |
दुनिया के तमाम देशों में ,रूस ,अमेरिका चीन आदि में राष्ट्रीय आंदोलनों के पश्चात उन आंदोलनों का नेतृत्व करनेवाले ही देश की बागडोर अपने हाथों में लेते हैं |चाहे वो रूस के लेनिन हों या दक्षिण अफ्रिका के नेल्सन मंडेला या अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन|
लेकिन हमारे देश में जब देश आजाद हुआ तो गाँधी जी देश की राजधानी से दूर नोआखाली में शोक मना रहे थे देश के विभाजन का |
आज से पैंतीस साल पहले जब देश में लोकतंत्र कैद कर दिया गया और इमरजेंसी लगा दी गई तो आन्दोलन की बागडोर थी जयप्रकाश नारायण के हाथों में और बाद में जब सरकार बनी जनता पार्टी की तो देश के प्रमुख बने मोरारजी देसाई |
आखिर क्या परेशानी इस देश के महान लोगों की?शायद उनके लिए अपने देश से ज्यादा कीमत थी अपनी छवि की |
शायद इसीलिए हमारे देश में लोग राष्ट्र की कीमत नहीं समझते | तब क्यों हम चिल्लाते हैं की राजनीति में देश की परवाह नहीं करनेवाले लोग भरे पड़े हैं |
जब महानता के शिखर पर बैठे हुए लोग भी देश से ज्यादा अपनी परवाह करते दिखते हैं तो आम जन उनसे प्रेरणा लेकर राजनीती को अपनी दौलत और ताकत के रूप में इस्तेमाल करता है तो इतनी हाय तौबा क्यों ?
हमें शायद नए सिरे से इस देश के महान लोगों का इतिहास लिखना चाहिए और काल के कब्र में जाकर भी अनश्वर हो उठे महापुरुषों की इस बड़ी भूलों को आनेवाली पीढ़ियों के सामने रखा जाना चाहिए |
और सोचना चाहिए की राजनीति से दूर जाकर हम ठीक कर रहे हैं या गलत |
इस देश का दुश्मन कौन ?राजनीति करनेवाले या राजनीति से दूर रहनेवाले ?जी नहीं राजनीति से दूर रहनेवाला इमानदार आदमी इस देश का सबसे ज्यादा नुकसान कर रहा है |
एक उदहारण दे रहा हूँ |मान लीजिये आप सड़क पर जा रहे हों और कुछ गुंडे किसी महिला की इज्जत लूटने की कोशिश कर रहे हों तो आप क्या करेंगे ?उन गुंडों पर जो हथियार आपके पास हों उनसे हमला कर देंगे या अहिंसा के पुजारी बनकर चुपचाप वहाँ से खिसक लेंगे ?
अब यही सवाल देश के लोकतंत्र के बारे में है |लोकतंत्र का सबसे बड़ा हिस्सा है चुनाव |ज्यादातर लोगों को मैंने कहते सूना है की राजनीति और चुनाव लड़ना ये दोनों शरीफों का काम नहीं है ,कि आजकल माफिया और अपराधी ही चुनाव लड सकते है |ये देश के बहुमत की आवाज है |ये आवाज उन लोगों की भी है जो अपना मत बूथों पर जाकर देते हैं |
ये तथाकथित देश के शरीफ लोग राजनीति का मैदान गलत लोगों के लिए छोड़कर देश का कौन सा भला कर रहे हैं |राजनीति और लोकतंत्र का बलात्कार करनेवालों से भिड़ जाना न्याय है या वहाँ से हट जाना ?
लेकिन इस देश में ऐसे लोगों को ही पूजा जाता है जो अपने आप को महान कहलाने के लिए जिम्मेदारियों से पलायन कर जाते हैं |
दुनिया के तमाम देशों में ,रूस ,अमेरिका चीन आदि में राष्ट्रीय आंदोलनों के पश्चात उन आंदोलनों का नेतृत्व करनेवाले ही देश की बागडोर अपने हाथों में लेते हैं |चाहे वो रूस के लेनिन हों या दक्षिण अफ्रिका के नेल्सन मंडेला या अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन|
लेकिन हमारे देश में जब देश आजाद हुआ तो गाँधी जी देश की राजधानी से दूर नोआखाली में शोक मना रहे थे देश के विभाजन का |
आज से पैंतीस साल पहले जब देश में लोकतंत्र कैद कर दिया गया और इमरजेंसी लगा दी गई तो आन्दोलन की बागडोर थी जयप्रकाश नारायण के हाथों में और बाद में जब सरकार बनी जनता पार्टी की तो देश के प्रमुख बने मोरारजी देसाई |
आखिर क्या परेशानी इस देश के महान लोगों की?शायद उनके लिए अपने देश से ज्यादा कीमत थी अपनी छवि की |
शायद इसीलिए हमारे देश में लोग राष्ट्र की कीमत नहीं समझते | तब क्यों हम चिल्लाते हैं की राजनीति में देश की परवाह नहीं करनेवाले लोग भरे पड़े हैं |
जब महानता के शिखर पर बैठे हुए लोग भी देश से ज्यादा अपनी परवाह करते दिखते हैं तो आम जन उनसे प्रेरणा लेकर राजनीती को अपनी दौलत और ताकत के रूप में इस्तेमाल करता है तो इतनी हाय तौबा क्यों ?
हमें शायद नए सिरे से इस देश के महान लोगों का इतिहास लिखना चाहिए और काल के कब्र में जाकर भी अनश्वर हो उठे महापुरुषों की इस बड़ी भूलों को आनेवाली पीढ़ियों के सामने रखा जाना चाहिए |
और सोचना चाहिए की राजनीति से दूर जाकर हम ठीक कर रहे हैं या गलत |
12 मई 2010
अपराधी कौन ?
अपराधी कौन ? ,
ब्रिटेन की संसद में ,कई साल पहले भाषण देते हुए एक सांसद ने कहा की समाज में हम जिस अपराध को जानते हैं वो सिर्फ पुरे अपराध जगत का दस फीसदी हिस्सा है बाकी नब्बे प्रतिशत अपराध पर हम चर्चा ही नहीं करते |
विख्यात समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने एक बार कहा था कि मेरा बस चले तो मैं बच्चों की एक पार्टी बनाऊं जिसका काम सिर्फ ये हो की जब बच्चों की माँ उन्हें थप्पड़ मारें तो वे पलटकर अपनी माँ को एक तमाचा लगा दें इससे ऊपर से निचे तक जो अन्याय की कड़ी फैली हुई है वो टूट जायेगी | दरअसल लोहिया जी उस चीज के बारे में बात करना चाहते हैं जो देश के सरकारी कार्यालय या हर सार्वजनिक कार्य वाले जगहों पर जो शीर्ष अधिकारी होते हैं वो अपने नीचेवाले को डांटते हैं तो वो नीचेवाला अपने वरिष्ठ से डरा हुआ है इसलिए गर्दन नीचे करके सह लेता है और अपना गुस्सा अपने नीचेवाले पर निकालता है |अब ये क्रम चलते चलते सबसे नीचेवाले कर्मचारी तक पहुंचता है तो वो नीचेवाला अपने घर आता है |और सारा गुस्सा अपनी औरत पर निकालता है | अब औरत क्या करती है ? औरत भी चूकि अपने पति की ताकत के आगे विवश और लाचार है तो वो पति का सारा गुस्सा अपने बच्चों पर निकालती है उन्हें मारती पिटती है |तो लोहिया जी कहते हैं की अगर बच्चा अपनी माँ के थप्पड़ का जवाब पलट कर दे दे तो औरत भी पलटेगी और अपने पति के थप्पड़ का जवाब देगी फिर पति अपने कार्यालय में अपने वरिष्ठ को जवाब देगा और इस तरह ये अन्याय बंद होगा
ब्रिटेन की संसद में ,कई साल पहले भाषण देते हुए एक सांसद ने कहा की समाज में हम जिस अपराध को जानते हैं वो सिर्फ पुरे अपराध जगत का दस फीसदी हिस्सा है बाकी नब्बे प्रतिशत अपराध पर हम चर्चा ही नहीं करते |
विख्यात समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने एक बार कहा था कि मेरा बस चले तो मैं बच्चों की एक पार्टी बनाऊं जिसका काम सिर्फ ये हो की जब बच्चों की माँ उन्हें थप्पड़ मारें तो वे पलटकर अपनी माँ को एक तमाचा लगा दें इससे ऊपर से निचे तक जो अन्याय की कड़ी फैली हुई है वो टूट जायेगी | दरअसल लोहिया जी उस चीज के बारे में बात करना चाहते हैं जो देश के सरकारी कार्यालय या हर सार्वजनिक कार्य वाले जगहों पर जो शीर्ष अधिकारी होते हैं वो अपने नीचेवाले को डांटते हैं तो वो नीचेवाला अपने वरिष्ठ से डरा हुआ है इसलिए गर्दन नीचे करके सह लेता है और अपना गुस्सा अपने नीचेवाले पर निकालता है |अब ये क्रम चलते चलते सबसे नीचेवाले कर्मचारी तक पहुंचता है तो वो नीचेवाला अपने घर आता है |और सारा गुस्सा अपनी औरत पर निकालता है | अब औरत क्या करती है ? औरत भी चूकि अपने पति की ताकत के आगे विवश और लाचार है तो वो पति का सारा गुस्सा अपने बच्चों पर निकालती है उन्हें मारती पिटती है |तो लोहिया जी कहते हैं की अगर बच्चा अपनी माँ के थप्पड़ का जवाब पलट कर दे दे तो औरत भी पलटेगी और अपने पति के थप्पड़ का जवाब देगी फिर पति अपने कार्यालय में अपने वरिष्ठ को जवाब देगा और इस तरह ये अन्याय बंद होगा
क्योंकि जब बच्चा अपनी माँ के गुस्से का जवाब नहीं दे पाता तो वो सडकों पर अपने गुस्से का इजहार करता है और अपराधी बन जाता है
तो ये अन्याय बंद हो इसके बारे में हमें विचार करना पडेगा || 11 मई 2010
क्या संभव नहीं है कुछ भी बदलना ?
क्या संभव नहीं है कुछ भी बदलना ? शायद नहीं | क्योंकि राम और कृष्ण ,वेदव्यास और बाल्मीकि ,aryabhatt और वराहमिहिर ,कालिदास और चाणक्य के इस देश में जितना लिखा पढ़ा गया उतना दुनिया में शायद कहीं नहीं लिखा गया| क्या और कितनी नैतिक शिक्षा या नैतिक बदलाव हम ला पाए समाज में ?
कभी आपने सूना है हमारे देश में किसी बड़े पैसेवाले को कि उसने अपनी जीवन भर कि कमी को दान कर दिया हो समाज कि सेवा के लिए ?एक बिल गेट्स अपनी बुद्धि से दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनता है और एक दिन आता है जब अपना सब कुछ दान करके वो हट जाता है |
क्या कोई ऐसा उदहारण हमारे हिन्दुस्तान में आपको खोजे मिलेगा ?
एक बिल क्लिंटन पर आरोप लगता है कि वो मोनिका लेविंस्की नाम की महिला के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना चुका है | थोड़े से ही किचकिच के बाद वो राष्ट्रपति पुरे राष्ट्र के सामने स्वीकार करता है की हाँ मेरे सम्बन्ध रहे हैं |
ज़रा सोचिये अपने राष्ट्र के किसी बड़े नेता के बारे में |चाहे सबकुछ दुनिया के सामने आ जाए लेकिन वो मरते दम तक अपने सच को स्वीकार नहीं करेगा और कई सालों तक देश की अदालत को अपने मामले में उलझाए रखेगा |
सोचिये |ये वही देश है जहां सबसे ज्यादा धर्म और नैतिकता की किताबें लिखी गई हैं | कितना सीखा है लोगों ने
अरे जनाब लिखने और मीडिया के माध्यम से या अखबारों के माध्यम किसी समाज को आप नहीं बदल सकते |उन्हें पढ़नेवाले लोग सिर्फ मनोरंजन के रूप में ही लेते हैं किसी नैतिक शिक्षा को बस |
कभी आपने सूना है हमारे देश में किसी बड़े पैसेवाले को कि उसने अपनी जीवन भर कि कमी को दान कर दिया हो समाज कि सेवा के लिए ?एक बिल गेट्स अपनी बुद्धि से दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनता है और एक दिन आता है जब अपना सब कुछ दान करके वो हट जाता है |
क्या कोई ऐसा उदहारण हमारे हिन्दुस्तान में आपको खोजे मिलेगा ?
एक बिल क्लिंटन पर आरोप लगता है कि वो मोनिका लेविंस्की नाम की महिला के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना चुका है | थोड़े से ही किचकिच के बाद वो राष्ट्रपति पुरे राष्ट्र के सामने स्वीकार करता है की हाँ मेरे सम्बन्ध रहे हैं |
ज़रा सोचिये अपने राष्ट्र के किसी बड़े नेता के बारे में |चाहे सबकुछ दुनिया के सामने आ जाए लेकिन वो मरते दम तक अपने सच को स्वीकार नहीं करेगा और कई सालों तक देश की अदालत को अपने मामले में उलझाए रखेगा |
सोचिये |ये वही देश है जहां सबसे ज्यादा धर्म और नैतिकता की किताबें लिखी गई हैं | कितना सीखा है लोगों ने
अरे जनाब लिखने और मीडिया के माध्यम से या अखबारों के माध्यम किसी समाज को आप नहीं बदल सकते |उन्हें पढ़नेवाले लोग सिर्फ मनोरंजन के रूप में ही लेते हैं किसी नैतिक शिक्षा को बस |
ये सत्य तो बड़ा कड़वा है भाई
मैं एक ऐसे देश का नागरिक हूँ जहां न्याय के मंदिर को सबसे ज्यादा पवित्र और उम्मीद का आखिरी दरबार समझा जाता है |
ये वो सत्य है जो हमें दिखाया या पढ़ाया जाता है |
अब सुनिए वो घटना जो ऊपर कहे गए सत्य को कठगरे में खडा करता है |बनारस के पास एक गाँव है |जहां जमीं को लेकर दो पक्षों में झगड़ा हुआ |एक पक्ष ने दुसरे पक्ष की एक बूढी महिला का हाथ मारकर तोड़ दिया| महिला ने स्थानीय थाना प्रमुख से न्याय नहीं मिलने के कारण जिले की अदालत में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने न्याय के अर्जी दाखिल की | अदालत में बहस हुई और दंडाधिकारी ने आदेश सुरक्षित रख लिया |दो दिन बाद दंडाधिकारी ने अपने पेशकार के माध्यम से महिला के पास खबर भिजवाई की दो दिन बाद तारीख है मैं उस दिन सम्मान जारी कर दूंगा लेकिन कुछ खर्चा पानी चाहिए |महिला मेरे जान पहचान की थी |उसने मुझसे सारी बात बताई |मैं हैरान होता हुआ वकील से मिला |वकील ने बताया की ये तो जरूरी है |हर केस में ऐसा होता है |बिना दंडाधिकारी को पैसा दिए किसी केस में आदेश नहीं होता है |मैं अब तक हैरान -परेशान हूँ |समझ नहीं पाता की इस बात को किसके आगे कहूँ|
अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ता हूँ कि फलां ताकतवर आदमी को क़ानून ने नहीं बख्शा ,तो फलाँ को सजा हो गई ,वगैरह वगैरह |
लेकिन ये घटना क्या है आखिर |जहां सच सिर्फ ये है कि दंडाधिकारी बिना खर्चा पानी लिए सही आदेश भी नहीं कर सकता |
हम कौन से अंधा युग में जी रहे हैं |युग अंधा है या हम |या अंधा है क़ानून |
आइये हम सब सोचें |क्योंकि कभी न कभी हम सबका पाला अदालतों से पड़ने ही वाला है
ये वो सत्य है जो हमें दिखाया या पढ़ाया जाता है |
अब सुनिए वो घटना जो ऊपर कहे गए सत्य को कठगरे में खडा करता है |बनारस के पास एक गाँव है |जहां जमीं को लेकर दो पक्षों में झगड़ा हुआ |एक पक्ष ने दुसरे पक्ष की एक बूढी महिला का हाथ मारकर तोड़ दिया| महिला ने स्थानीय थाना प्रमुख से न्याय नहीं मिलने के कारण जिले की अदालत में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने न्याय के अर्जी दाखिल की | अदालत में बहस हुई और दंडाधिकारी ने आदेश सुरक्षित रख लिया |दो दिन बाद दंडाधिकारी ने अपने पेशकार के माध्यम से महिला के पास खबर भिजवाई की दो दिन बाद तारीख है मैं उस दिन सम्मान जारी कर दूंगा लेकिन कुछ खर्चा पानी चाहिए |महिला मेरे जान पहचान की थी |उसने मुझसे सारी बात बताई |मैं हैरान होता हुआ वकील से मिला |वकील ने बताया की ये तो जरूरी है |हर केस में ऐसा होता है |बिना दंडाधिकारी को पैसा दिए किसी केस में आदेश नहीं होता है |मैं अब तक हैरान -परेशान हूँ |समझ नहीं पाता की इस बात को किसके आगे कहूँ|
अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ता हूँ कि फलां ताकतवर आदमी को क़ानून ने नहीं बख्शा ,तो फलाँ को सजा हो गई ,वगैरह वगैरह |
लेकिन ये घटना क्या है आखिर |जहां सच सिर्फ ये है कि दंडाधिकारी बिना खर्चा पानी लिए सही आदेश भी नहीं कर सकता |
हम कौन से अंधा युग में जी रहे हैं |युग अंधा है या हम |या अंधा है क़ानून |
आइये हम सब सोचें |क्योंकि कभी न कभी हम सबका पाला अदालतों से पड़ने ही वाला है
04 मई 2010
कुछ शब्द हैं गुजारिश के रूप में
मैं जिस विषय पर कहने जा रहा हूँ ,उस पर काफी चर्चाएँ होती रहती हैं |
मेरी शिकायत है उन लोगों से जो ज्योतिषियों से अपनी शादी और नौकरी की तारीख जानना चाहते हैं |मुझे शिकायत है उन लोगों से जो हर छोटे काम को करने से पहले ज्योतिषियों से सलाह लेना चाहते हैं |मुझे शिकायत है उन लोगों से जो ज्योतिष को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग मानते हैं |
दूसरी तरफ मेरी शिकायत ज्योतिषियों से है जो हर व्यक्ति की कुंडली देखने से पहले ॐ गणेशाय नमः कहना या लिखना नहीं भूलते | आखिर क्यों वे ऐसा लिखकर लोगों के सामने ऐसा दर्शाते हैं मानो वे कोई बहुत बड़ा धार्मिक काम कर रहे हैं |
समाज को कैसे इन गलत धारणाओं से मुक्त किया जाए ?कैसे समझाया जाए कि "हे ज्ञान कि दुनिया के तानाशाहों ! हाथ जोड़कर विनती करता हूँ तुमसे कि कम से कम ज्ञान कि इस विधा को तो बख्श दो अपने धार्मिक चंगुल से |"
मैं आह्वान करता हूँ ,देश कि उभरती ज्ञान की नई पीढ़ी से की हाथ बढ़ाएं मेरे इस पाखंड विरोधी मुहीम में और ज्ञान की इतनी उपयोगी विधि से मानव जीवन को परिचित कराएँ ताकि वैज्ञानिक तरीके से हमारी समस्याओं के निदान में ज्योतिष का उपयोग किया जा सके |
तो जनाब क्या विचार हैं ?साठ दे रहे हैं मेरा या ज्योतिष का पाखंड ही मंजूर है आपको |
मेरी शिकायत है उन लोगों से जो ज्योतिषियों से अपनी शादी और नौकरी की तारीख जानना चाहते हैं |मुझे शिकायत है उन लोगों से जो हर छोटे काम को करने से पहले ज्योतिषियों से सलाह लेना चाहते हैं |मुझे शिकायत है उन लोगों से जो ज्योतिष को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग मानते हैं |
दूसरी तरफ मेरी शिकायत ज्योतिषियों से है जो हर व्यक्ति की कुंडली देखने से पहले ॐ गणेशाय नमः कहना या लिखना नहीं भूलते | आखिर क्यों वे ऐसा लिखकर लोगों के सामने ऐसा दर्शाते हैं मानो वे कोई बहुत बड़ा धार्मिक काम कर रहे हैं |
समाज को कैसे इन गलत धारणाओं से मुक्त किया जाए ?कैसे समझाया जाए कि "हे ज्ञान कि दुनिया के तानाशाहों ! हाथ जोड़कर विनती करता हूँ तुमसे कि कम से कम ज्ञान कि इस विधा को तो बख्श दो अपने धार्मिक चंगुल से |"
मैं आह्वान करता हूँ ,देश कि उभरती ज्ञान की नई पीढ़ी से की हाथ बढ़ाएं मेरे इस पाखंड विरोधी मुहीम में और ज्ञान की इतनी उपयोगी विधि से मानव जीवन को परिचित कराएँ ताकि वैज्ञानिक तरीके से हमारी समस्याओं के निदान में ज्योतिष का उपयोग किया जा सके |
तो जनाब क्या विचार हैं ?साठ दे रहे हैं मेरा या ज्योतिष का पाखंड ही मंजूर है आपको |
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