10 फ़रवरी 2009

क्या देश का क़ानून सिर्फ़ उतना ही न्याय का दिखावा करता है जितना की इस बात के लिए जरूरी है की जनता बगावत कराने का ख्याल मन सेनिकालदे ?शायद हाँ लड़कियों को बराबर अधिकार दिलाने के लिए जाने कितने क़ानून बनते हैं हर रोज लेकिन ये सब सिर्फ़ एक घटिया मजाक बनके रह जाता है | आख़िर क्यों ? कराती है सरकार इतना घटिया मजाक देश की मासूम और अबोध बच्चियों के साथ?क्या ख़ुद को ब्बुद्धिजिवी कहलवाने वाले हमलोग क्यों खामोश बैठे देश की आधी आबादी के साथ होते चले जा रहे इस जुल्म के ख़िलाफ़ एक आवाज तक उठाने को तैयार नही हैं ?क्यों ? क्यों ?अब चुप रहने से काम नहीं चलनेवाला , अब कहीं कहीं से आवाज uth

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