11 मार्च 2009

होली मुबारक हो ?मगर क्यों ?

कैसे कहूं की होली मुबारक हो ?दिल में जलजला है और आँखें में एक एक ऐसे दर्द का उन्माद छाया है जिसे मजबूर भी नहीं कर सकता की ऐ बह चलें जालिम दुनिया के ठहाकों का सामान बनने अरे छिपाते पूरे साल भर दिल के भीतर उठाते तूफ़ान को और जब आती है होली तो सोचते हो रंगों की आड़ में ,परम्परा की छाँव taले निकाल लें अपने दिल की भड़ास ?अरे क्यों भरे हो इतनी नफरतों से की एक खूबसूरत सा त्यौहार सिर्फ़ मन की भड़ास निकालने का एक अवसर मात्र बनकर raह जाता है कोशिश तो करें की आनेवाला साल के हर नए दिन ही निकलतें रहें अपने थोड़े गुस्से ,थोड़े झूठ ,थोड़े नफ़रत ताकि जब आए होली तो जी भर कर झूम सकें ,नाच सकें .जी भर कर अपने जिंदादिल दिल को खुराक दे सकें आज इतना ही ?अरे भाई होली है आज

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