17 मई 2010

मक्कारी शहर नहीं गाँव की औलाद है

मक्कारी शहर नहीं गाँव की औलाद है ?
 अरे भाई चौंकिए  मत| गाँव रहे हैं कभी ?जिनका गाँव की मिटटी से गहरा सम्बन्ध नहीं है वही कह सकता है की गाँव के लोग भोले -भाले और सीधे होते हैं |एक बार विजय दान देथा जी ने कहा था की गाँव का सबसे सीधा आदमी और शहर का सबसे बड़ा गुंडा एक बराबर हैं |
                                                                             मैं जिस भी गाँव में गया चाहे मेरा गाँव हो या कोई रिश्तेदारी का गाँव हर जगह एक दुसरे के प्रति लोगों में इतना द्वेष भरा पड़ा है की अगर आप चाहें कि किसी से मतलब नहीं रखते हुए चुपचाप अपना विकास करते रहें तो आप भूल जाइये ,ऐसा नहीं कर सकते आप |क्योंकि गाँव का आपका पडोसी अपना काम छोड़कर आप के पीछे पड़ा रहेगा कि कैसे आपको विकास के रस्ते  से पीछे खींचें |शहर में या बड़े महानगरों में भले ही लोगों के पास आपके लिए समय नहीं है लेकिन लोग जब भी मौक़ा मिलता है आपको मदद ही करते हैं |
                               भैया gaon   खाली दूर से  अच्छा लगता लगता है |
 एक कथा सुनाता हूँ |एक बार तुलसीदास जी जब मृत्यु शैया पर थीं उनकी पत्नी रत्नावली तो गाँव गए अपने पत्नी को अंतिम दर्शन देने |  तो गाँव के एक आदमी ने कहाः कि ",अरे यार ई तो तुलसिया है "
                                                                       तुलसी बाबा जी ने कहा ":तुलसी वहाँ न जाइये जहां आपका गाँव ;दास गया, तुलसी गया पड़ा तुलसी  तुलसिया नाम ;"  तो भैया यही है गाँव | 

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