31 मई 2010

क़ानून है या नाटक ?

क़ानून है या नाटक ?  
                               आज से बीस साल पहले की एक घटना मुझे आज न जाने क्यों याद आ रही है |दरअसल मैंने एक पत्रिका में देश में लागू  उस क़ानून के बारे में पढ़ रहाथा जिसमें चौदह साल से कम के बच्चो को काम पर रखना जुर्म माना गया  है | मेरे एक मित्र थे पटना में |मैं उस समय ग्यारहवीं में पढ़ता था |  मेरे मित्र के पिताजी अवकाश प्राप्त शिक्षक थे |उनके पास एक बहुत ही गरीब आदमी का बारह वर्षीय बेटा रहता था जो घर के लोगों को चाय -पानी पिलाया करता था |दरअसल वो लड़का सात भाई था |गरीबी का आलम ये की कमानेवाला सिर्फ एक उसका पिता और वो भी बीमार  व्यक्ति |
                             शिक्षक महोदय बड़े ही भावुक और इमानदार व्यक्ति थे एक दिन किसी तरह उस लडके के पिता से मिल गए |उसके पिता ने अपना दुख बताया तो उन्होंने उसे अपने घर रख लिया |
                                                                    उसे वे अपने बेटों की तरह मानते थे |कुछ ही दिनों में वो लड़का खा पीकर काफी स्वस्थ हो गया और कुछ घर में ही पढ़ने लिखने सीखने लगा  |उसकी जिंदगी मजे में गुजरने लगी थी ली अचानक एक दिन शक्षक महोदय के एक मित्र ने उन्हें श्रम क़ानून के बारे में बताया और साथ साथ ये भी कहा कि" आप गलत हैं क्योंकि  आप गैरकानूनी काम कर रहे हैं और यदि इसे आपने इसके घर नहीं भेजा तो आप कानूनी लफड़े में फँस जायेंगे |
                                                               उसके बाद आप सोच सकते हैं कि क्या हुआ होगा |उन्होंने उस लडके के पिता को बुलाया और  उसे अपनी मजबूरी बताते हुए उसे अपने  घर से हटा दिया |  बाद में वो लड़का फिर उसी गरीबी में पलने लगा और कुछ दिन बाद उसकी तबीयत खराब हो गई |
                                     कुछ दिन बाद वो लड़का इलाज के अभाव में मर गया |  मैं आज तक नहीं समझ पाता कि गलती क़ानून  बनानेवाली सरकार की थी या समाज की ?  क्या सार्थकता है इन कानूनों की देश में जहा आधी आबादी भूख को साथ लेकर सोती है |  

1 टिप्पणी:

  1. विचारणीय प्रश्न है।

    लेकिन उन्होंने उसे क्यो हटा दिया। चाय वगैरह पिलाना तो घर के लड़के भी करते हैं। यदि इसके अतिरिक्त कोई काम नहीं करवा रहे थे, तो शायद यह गलत नहीं था।

    लेकिन सच यह भी है कि अधिकतर लोग तो बच्चों से केवल कम पैसा दे कर या केवल खाना देकर काम करवाते हैं जो ठीक नहीं है। क्या अच्छा होता कि वे उसे बिना काम करवाये जैसे उनके अन्य लड़के होंगे,वैसे रखते।

    आप विराम का चिन्ह जगह छोड़ कर क्यों लगाते हैं। मेरे विचार से punctuation के सारे चिन्ह, जैसे ़ या , या ; या : या ' या " या ? बिना जगह छोड़ कर लगाने चाहिये। अन्यथा जैसा पहले पैराग्राफ के अन्त में हुआ कि विराम चिन्ह दूसरी लाइन में चला गया वही होगा।

    कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।

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