राजनीति से दूर रहनेवालों !सावधान ?
इस देश का दुश्मन कौन ?राजनीति करनेवाले या राजनीति से दूर रहनेवाले ?जी नहीं राजनीति से दूर रहनेवाला इमानदार आदमी इस देश का सबसे ज्यादा नुकसान कर रहा है |
एक उदहारण दे रहा हूँ |मान लीजिये आप सड़क पर जा रहे हों और कुछ गुंडे किसी महिला की इज्जत लूटने की कोशिश कर रहे हों तो आप क्या करेंगे ?उन गुंडों पर जो हथियार आपके पास हों उनसे हमला कर देंगे या अहिंसा के पुजारी बनकर चुपचाप वहाँ से खिसक लेंगे ?
अब यही सवाल देश के लोकतंत्र के बारे में है |लोकतंत्र का सबसे बड़ा हिस्सा है चुनाव |ज्यादातर लोगों को मैंने कहते सूना है की राजनीति और चुनाव लड़ना ये दोनों शरीफों का काम नहीं है ,कि आजकल माफिया और अपराधी ही चुनाव लड सकते है |ये देश के बहुमत की आवाज है |ये आवाज उन लोगों की भी है जो अपना मत बूथों पर जाकर देते हैं |
ये तथाकथित देश के शरीफ लोग राजनीति का मैदान गलत लोगों के लिए छोड़कर देश का कौन सा भला कर रहे हैं |राजनीति और लोकतंत्र का बलात्कार करनेवालों से भिड़ जाना न्याय है या वहाँ से हट जाना ?
लेकिन इस देश में ऐसे लोगों को ही पूजा जाता है जो अपने आप को महान कहलाने के लिए जिम्मेदारियों से पलायन कर जाते हैं |
दुनिया के तमाम देशों में ,रूस ,अमेरिका चीन आदि में राष्ट्रीय आंदोलनों के पश्चात उन आंदोलनों का नेतृत्व करनेवाले ही देश की बागडोर अपने हाथों में लेते हैं |चाहे वो रूस के लेनिन हों या दक्षिण अफ्रिका के नेल्सन मंडेला या अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन|
लेकिन हमारे देश में जब देश आजाद हुआ तो गाँधी जी देश की राजधानी से दूर नोआखाली में शोक मना रहे थे देश के विभाजन का |
आज से पैंतीस साल पहले जब देश में लोकतंत्र कैद कर दिया गया और इमरजेंसी लगा दी गई तो आन्दोलन की बागडोर थी जयप्रकाश नारायण के हाथों में और बाद में जब सरकार बनी जनता पार्टी की तो देश के प्रमुख बने मोरारजी देसाई |
आखिर क्या परेशानी इस देश के महान लोगों की?शायद उनके लिए अपने देश से ज्यादा कीमत थी अपनी छवि की |
शायद इसीलिए हमारे देश में लोग राष्ट्र की कीमत नहीं समझते | तब क्यों हम चिल्लाते हैं की राजनीति में देश की परवाह नहीं करनेवाले लोग भरे पड़े हैं |
जब महानता के शिखर पर बैठे हुए लोग भी देश से ज्यादा अपनी परवाह करते दिखते हैं तो आम जन उनसे प्रेरणा लेकर राजनीती को अपनी दौलत और ताकत के रूप में इस्तेमाल करता है तो इतनी हाय तौबा क्यों ?
हमें शायद नए सिरे से इस देश के महान लोगों का इतिहास लिखना चाहिए और काल के कब्र में जाकर भी अनश्वर हो उठे महापुरुषों की इस बड़ी भूलों को आनेवाली पीढ़ियों के सामने रखा जाना चाहिए |
और सोचना चाहिए की राजनीति से दूर जाकर हम ठीक कर रहे हैं या गलत |
14 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
क्रांतिकारी विचार हैं भाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर।
दरअसल, राजनीति इतनी गंदी हो गई है कि कोई भी परहेज करता है, इस कीचड़ में उतरने से।